Jitiya vart कल शुभ मुहूर्त कब है | जीवित्पुत्रिका व्रत 2023:
जितिया vart में माताएं आपने बच्चो के लंबी आयु के लिए वृत रखती है जितिया वर्त 6 अक्टूबर को होगा
इस व्रत में पूरे दिन निर्जला यानी कि (बिना जल ग्रहण किए ) व्रत रखा जाता है। यह पर्व उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल के मिथिला और थरुहट में आश्विन माह में कृष्ण-पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस तक तीन दिनों तक मनाया जाता है। इस बार यह व्रत 6 और 7 सितंबर को है तो आइए जानते हैं जितिया व्रत की पूजा विधि और कथा विस्तार से।
जितिया vart में माताएं आपने बच्चो के लंबी आयु के लिए वृत रखती है जितिया वर्त 6 अक्टूबर को होगा
इस व्रत में पूरे दिन निर्जला यानी कि (बिना जल ग्रहण किए ) व्रत रखा जाता है। यह पर्व उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल के मिथिला और थरुहट में आश्विन माह में कृष्ण-पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस तक तीन दिनों तक मनाया जाता है। इस बार यह व्रत 6 और 7 सितंबर को है तो आइए जानते हैं जितिया व्रत की पूजा विधि और कथा विस्तार से।
Jitiya vart कल शुभ मुहूर्त कब है | जीवित्पुत्रिका व्रत 2023:
जितिया vart में माताएं आपने बच्चो के लंबी आयु के लिए वृत रखती है जितिया वर्त 6 अक्टूबर को होगा
इस व्रत में पूरे दिन निर्जला यानी कि (बिना जल ग्रहण किए ) व्रत रखा जाता है। यह पर्व उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल के मिथिला और थरुहट में आश्विन माह में कृष्ण-पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस तक तीन दिनों तक मनाया जाता है। इस बार यह व्रत 6 और 7 सितंबर को है तो आइए जानते हैं जितिया व्रत की पूजा विधि और कथा विस्तार से।
जितिया Vart की पूजा विधि :जितिया Vart चील सियार की कथा:
जितिया Vart की पूजा विधि :
जितिया व्रत के पहले दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले जागकर स्नान करके पूजा करती हैं और फिर एक बार भोजन ग्रहण करती हैं और उसके बाद पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं। इसके बाद दूसरे दिन सुबह-सवेरे स्नान के बाद महिलाएं पूजा-पाठ करती हैं और फिर पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं। व्रत के तीसरे दिन महिलाएं पारण करती हैं। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं अन्न ग्रहण कर सकती हैं। मुख्य रूप से पर्व के तीसरे दिन झोर भात, मरुवा की रोटी और नोनी का साग खाया जाता है। अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है। जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, अक्षत, पुष्प, फल आदि अर्पित करके फिर पूजा की जाती है। इसके साथ ही मिट्टी और गाय के गोबर से सियारिन और चील की प्रतिमा बनाई जाती है। प्रतिमा बन जाने के बाद उसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पूजन समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है।
जितिया Vart चील सियार की कथा:
जितिया की कथा के अनुसार एक बार एक चील और एक मादा लोमड़ी नर्मदा नदी के पास हिमालय के जंगल में रहते थे। दोनों ने कुछ महिलाओं को पूजा करते और उपवास करते देखा और खुद भी इसे करने की कामना की। उपवास के दौरान, लोमड़ी को बहुत भूख लग गयी और वह जाकर चुपके से मरे हुए जानवर को खा लिया। दूसरी ओर, चील ने पूरे समर्पण के साथ व्रत का पालन किया और उसे पूरा किया। अगले जन्म में दोनों ने मनुष्य रूप में जन्म लिया। चील के कई पुत्र हुए और वह सभी जीवित रहे। लेकिन सियार के पुत्र होकर मर जाते थे। इससे बदले की भावना से उसने चील के बच्चे को कई बार मारने का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो गई। बाद में चील ने सियार को अपने पूर्व जन्म के जितिया व्रत के बारे में बताया। इस व्रत से सियार ने भी संतान सुख प्राप्त किया। इस तरह यह व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए जगत में प्रसिद्ध हुआ।